विश्व भर में विश्व जनसंख्या दिवस 11 जुलाई को मनाया जाता है। यह वैश्विक जनसंख्या के विभिन्न मुद्दों जैसे कि जनसंख्या वृद्धि, परिवार नियोजन, लैंगिक समानता, साक्षरता, गरीबी, मातृत्व स्वास्थ्य, मानवाधिकार, आदि के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा 1989 में शुरु किया गया था।
इन मुद्दों में जनसंख्या वृद्धि पर सबसे अधिक विमर्श होता है क्योंकि यह सबसे पहले और सबसे बड़ी समस्या के रूप में दिखाई देता है। भारत दुनिया में पहला देश है जिसने 1952 में ही राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम की शुरुआत की थी और प्रथम राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 1976 में बनाई थी। यदि प्रथम राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम, 1952 से ही शिक्षा पर समुचित ध्यान दिया गया होता तो आज जनसंख्या वृद्धि की समस्या न होती और हमें जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करने के सम्बन्ध में विचार नहीं करना पड़ता। सभी शोध बताते हैं कि शिक्षा और साक्षरता में वृद्धि से हर समुदाय की जन्म दर में कमी आती है, वह समुदाय किसी भी धर्म, जाति या संस्कृति का हो। एक निरक्षर व्यक्ति को बड़े परिवार से होने वाली समस्याएं और सीमित परिवार के लाभ पता नहीं होते हैं। जनसंख्या वृद्धि की दृष्टि से वर्तमान में औपचारिक शिक्षा के साथ-साथ प्रौढ़ शिक्षा भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वर्तमान की तीव्र जनसँख्या वृद्धि अभिप्रेरित जनसँख्या वृद्धि है, न कि उच्च जन्म दर के कारण|
भारत में शिक्षा की जरूरत अधिक थी क्योंकि इतिहास में लम्बे समय तक समाज के एक बड़े हिस्से को शिक्षा से वंचित रखा गया था किन्तु भारत में हर पंचवर्षीय योजना और हर राजनैतिक दल की सरकार के समय में शिक्षा पर खर्च विभिन्न शिक्षा समितियों द्वारा सुझाए गए अनुपात से काफी कम रहा है। इसके साथ ही शिक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार भी विद्यमान रहा है। शिक्षकों, नीति-नियंताओं, सरकारों और प्रशासनिक अधिकारियों की अकर्मण्यता और उदासीनता भी शिक्षा की अवदशा के लिए जिम्मेदार रही है। शिक्षा की यह अवदशा जानबूझकर की गई प्रतीत होती है क्योंकि आज तक शासक वर्ग का चरित्र सामंतवादी रहा है जो बहुसंख्यक समाज को अब भी शिक्षा से वंचित रखना चाहता है| उत्तर प्रदेश में पूर्व में चल रही प्रौढ़ शिक्षा योजना को बंद करना, विद्यालयों को बंद करना और विद्यालयों और महाविद्यालयों का निजीकरण इसके उदाहरण हैं| निर्धनता के कारण निजी शिक्षा जनसंख्या के एक बड़े हिस्से की पहुंच से दूर है और सरकारी शिक्षा की गुणवत्ता आज भी खराब है। इस प्रकार जनसंख्या वृद्धि के लिए आम जनता से अधिक अब तक की सरकारें, नीति-नियंता और नौकरशाही जिम्मेदार रही है क्योंकि सभी को समुचित शिक्षा उपलब्ध करवाना इन्हीं की जिम्मेदारी होती है।
इसके अलावा जनसंख्या संक्रमण सिद्धांत कहता है कि किसी भी देश में पहले मृत्यु-दर में कमी आती है, उसके बाद ही जन्म-दर में कमी आती है। मृत्यु-दर में कमी सबसे अधिक स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता और उनके उपयोग के साथ-साथ शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक विकास से आती है। सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता आज भी दयनीय अवस्था में है और निजी स्वास्थ्य सुविधाओं तक समस्त जनसंख्या की पहुँच नहीं है क्योंकि जनसंख्या का एक बड़ा भाग गरीबी रेखा से नीचे रहा है और आज भी है। इसके साथ ही "कानून के शासन" के प्रसार से भी जनसंख्या वृद्धि को कम करने में सहायता मिलती है क्योंकि कानून के अप्रभावी होने की दशा में "जिसकी लाठी, उसी की भैंस" होने के कारण बड़े परिवार को महत्व मिलता है। देश में कानून व्यवस्था की स्थिति आज भी बहुत अच्छी नहीं है।
परिवार नियोजन कार्यक्रम को लागू करते समय सरकार ने परिवार नियोजन के साधनों की उपलब्धता पर अधिक ध्यान दिया जबकि इनके उपयोग हेतु जागरुकता और उपयोग की महत्ता पर कम जोर दिया। यदि किसी भी वस्तु के उपयोग के प्रति समुचित जागरूकता नहीं होगी और उसके उपयोग की महत्ता नहीं पता होगी, तो उपलब्धता के बाद भी लोग उसका उपयोग नहीं करेंगे| अतः जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करते समय विभिन्न पक्षों को ध्यान में रखना जरूरी है, अन्यथा की स्थिति में कुछ वर्गों, जो निम्न शिक्षित और अशिक्षित हैं, के साथ अन्याय हो सकता है। चीन ने भी जब जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू किया था तो कुछ वर्गों को उससे छूट दे रखी थी।
जनसंख्या वृद्धि और परिवार नियोजन के अलावा अन्य मुद्दों पर भी ध्यान देना आवश्यक है। लैंगिक समानता के लिए महिला सशक्तिकरण जरूरी है| इसके लिए महिलाओं में शिक्षा के प्रसार की अति आवश्यकता है। शिक्षा द्वारा महिलाओं की कार्य सहभागिता दर बढ़ने से महिलाओं का सशक्तिकरण होगा और देश से गरीबी उन्मूलन में भी सहायता मिलेगी| महिलाओं के सशक्तिकरण द्वारा असंतुलित लिंगानुपात को संतुलित करने में भी सहायता मिलेगी| लिंगानुपात संतुलित होने से असंतुलित लिंगानुपात के दुष्परिणामों को ख़त्म करने में सहायता मिलेगी|
गरीबी उन्मूलन, मानवाधिकार और कृषि पर जनसंख्या दबाव को कम करने के लिए भी शिक्षा एवं साक्षरता अति महत्वपूर्ण है। शिक्षा द्वारा निर्धन लोग रोजगार प्राप्त करके गरीबी से बाहर निकल सकते हैं। शिक्षित नागरिक अपने अधिकारों के प्रति जागरुक होते हैं और आवाज उठा सकते हैं, जिससे उनके मानवाधिकार सुरक्षित रहेंगे| शिक्षा, विशेषतः व्यावसायिक शिक्षा द्वारा लोग कृषि से इतर क्षेत्रों में रोज़गार प्राप्त करेंगे जिससे कृषि पर जनसंख्या दबाव कम होगा। अधिकांश कृषक वर्ग अशिक्षित या कम शिक्षित है जिसके कारण उनमें जनसंख्या वृद्धि दर अधिक है। शिक्षा और साक्षरता बढ़ने से उनमें जनसंख्या वृद्धि में कमी आएगी जिससे पुनः कृषि पर जनसंख्या दबाव कम करने में सहायता मिलेगी।
ऐतिहासिक रूप से, शिक्षा से वंचन और निर्धनता के कारण आज भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा बहुसंख्यक समाज की पहुँच से दूर है जिसके कारण जनसँख्या वृद्धि, लैंगिक असमानता, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, मानवाधिकार, आदि प्रत्येक क्षेत्र में बहुसंख्यक समाज की हानि हुई है और आज भी हो रही है| इसलिए राज्यों और केन्द्र की सरकार को गुणवत्तापूर्ण औपचारिक शिक्षा के साथ-साथ प्रौढ़ शिक्षा पर अति शीघ्र ध्यान देने की आवश्यकता है किन्तु सामंतवादी चरित्र के कारण वर्तमान सरकारें यह कार्य नहीं करेंगी| अतः बहुसंख्यक समाज को सत्ता में पहुंचकर अपने लिए गुणवत्तापूर्ण सरकारी शिक्षा की व्यवस्था स्वयं करनी चाहिए|
डॉ. राम सिंह
प्रोफ़ेसर-भूगोल,
जे. एल. एन. डिग्री कॉलेज, एटा, उ.प्र.
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