"दम तोड़ रही जिंदगी का सहारा बना इकलौता चिराग"
बीमार राकेश वर्मा के परिवार को शासन प्रशासन से मदद की दरकार
(गोविन्द अवस्थी)
शाहजहाँपुर---नियति का ऐसा क्रूर मजाक, कि पढ़ने लिखने की उम्र में विवेक अपने बीमार पिता के इलाज के लिए दर-दर भटककर पैसों का बंदोबस्त करता फिर रहा है।
यह दर्द बयां करती हुई कहानी है शहर के थाना कोतवाली अंतर्गत मोहल्ला रोशनगंज के अतरसेन मिल वाली गली में रहने वाले राकेश वर्मा के परिवार की। बीते करीब एक वर्ष से सेप्टिक रोग से जूझ रहे राकेश के परिवार में 16 वर्षीय बेटा विवेक तथा उससे छोटी एक बेटी है। बच्चों की माँ का काफी समय पहले सड़क दुर्घटना में देहांत हो गया था। तब विवेक की उम्र बामुश्किल चार साल की रही होगी। दोनों बच्चों को राकेश ने माँ और बाप दोनों का प्यार दुलार दिया। लेकिन समय ने राकेश के साथ ऐसा क्रूर मजाक किया जिसका उनको अंदाज भी नहीं था। दो वर्ष डायविटीज के मरीज राकेश को दो वर्ष पहले सेप्टिक हो जाने पर उनके अंगों के घाव सड़ने लगे। शाहजहाँपुर से बरेली और फिर लखनऊ तक इलाज कराया। जिस कारण कमाई हुई सारी संपत्ति धीरे-धीरे इलाज और जीवन यापन में ख़त्म हो गयी। वर्तमान में लखनऊ के मेडिकल कालेज से उपचार चल रहा है। अज्ञात कारणों वश राकेश को चिकित्सकों ने भर्ती करने से इनकार कर दिया। राकेश की पन्द्रह दिन की दवा का खर्च करीब आठ हजार रुपये होता है। और फिर रोटी की जद्दोजहद। इसीलिए पढ़ने लिखने की उम्र में विवेक अपने पिता की दवा और छोटी बहन के लिए मजदूर बन गया। जहाँ तहाँ मजदूरी करके विवेक जिंदगी की गाडी को खीचने की कोशिश कर रहा है। चारपाई पर पड़े बीमार राकेश घाव से उठ रहे दर्द से कराहते रहते हैं। परिवार का दुःख देखकर बरबस ही किसी की भी आँखें भर सकती हैं। परिवार को शासन प्रशासन और सामाजिक संस्थाओं से मदद की दरकार है।
इनके नंबर पर आप लोग बात कर सकते हैं। 6307840039
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