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डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य क्या पिछड़ों और दलितों का वोट विधानसभा चुनाव में दिला पाएंगे?

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Updated: Aug 18, 2020



पिछड़े और दलितों की गोलबंदी कर प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने दिलाया था बहुमत नही मिला सीएम पद




पिछड़ों को हकीकत जब पता चली जब केशव प्रसाद मौर्य को बहुत मुश्किल से डिप्टी सीएम का पद मिला.



देवेन्द्र प्रताप सिंह कुशवाहा


उत्तर प्रदेश: भारतीय जनता पार्टी से ओबीसी समाज खासतौर पर मौर्य-कुशवाहा शाक्य-सैनी वोटरों को भाजपा की तरफ जोड़ने में सबसे बड़ी भूमिका पिछड़ो के नेता केशव प्रसाद मौर्य की थी।


केशव प्रसाद मौर्य के नाम पर मौर्य-कुशवाहा-शाक्य-सैनी-वर्मा-शर्मा-पाल-राठौर-कुर्मी- प्रजापति सहित पूरे पिछड़े समाज ने सपा-बसपा का साथ छोड़ दिया और भाजपा को सत्ता तक पहुँचा दिया।


2017 विधान सभा चुनाव से पहले पिछड़े और दलित समाज को उम्मीद थी कि कल्याण सिंह के बाद भाजपा एक बार फिर से पिछड़े वर्ग से आने वाले केशव प्रसाद मौर्य को सीएम की कुर्सी सौंप देगी। लेकिन चुनाव के बाद पिछड़ों और दलितों का यह अनुमान गलत निकला।


पिछड़ों को हकीकत भाजपा की जब पता चली जब केशव प्रसाद मौर्य को बहुत मुश्किल से डिप्टी सीएम का पद मिला. हालांकि इस पर भी दलितों सहित पिछड़े वर्ग के लोगों ने संतोष कर लिया। दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों को अब भी उम्मीद थी कि दलित और पिछड़े वर्ग से जुड़े मुद्दों एव उनके हितों पर केशव प्रसाद मौर्य बोलेंगे और उन्हें शासन सता में प्रतिनिधित्व दिलाएंगे, सामाजिक न्याय के पैरोकार बनेंगे लेकिन सारी की सारी सोच धरी रह गई। भाजपा को वोट देने और संख्याबल के बावजदू दलित एव पिछड़े वर्ग के नेताओं को पर्याप्त प्रतिनिधित्व सम्मान नही मिला। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य केवल अपने विभाग तक सीमित रह गए अपने समाज मौर्य कुशवाहा शाक्य सैनी के अधिकारियों को डीएम, एसपी, एसडीएम तहसीलदार, कोतवाल, दारोगा और बीडीओ बीईओ बीएसए जैसे पद नही दिलवा पाए।


उन्होंने हिंदुत्व के मुद्दों पर तो लगातार आवाज उठाई लेकिन हर रोज मारे पीटे जा रहे ओबीसी और एससी से जुड़े मसलों पर लगातार वे चुप ही रहे। हालात ये है कि उनकी छवि इस समय ‘नाम के डिप्टी सीएम’ की बनकर रह गई है। मौर्य- कुशवाहा शाक्य सैनी दलित पिछड़े वर्ग के लोगों में भी केशव को लेकर भारी निराशा और असंतोष के भाव है क्योंकि डिप्टी सीएम मौर्य के यहा से लोगों के जायज काम भी नहीं हो पा रहे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि आखिर आने वाले दिनों में केशव प्रसाद मौर्य पिछड़े वर्ग के वोटरों को भाजपा की तरफ कैसे आकर्षित कर पाएंगे।

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