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स्कूल की फीस पर टिकी है भारत की अर्थव्यवस्था समाजसेवी पत्रकार देवेन्द्र प्रताप सिंह कुशवाहा

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स्कूल की फीस पर टिकी है भारत की अर्थव्यवस्था



इस समय कोरोना वायरस की बजह से देश में लॉक डाउन का समय चल रहा है ये लॉक डाउन स्कूल के लिए भी और छात्रों के लिए भी है स्कूल बाले साल भर बच्चों को पढ़ाते है और मार्च में स्कूल संचालक फीस की उम्मीद लगाए बैठे होते है उनका हिसाब साल भर बाद ही फाइनल हो पाता है यही सिलसिला हर वर्ष चलता रहता है हालांकि उनका सामना एक कटु सत्य से होता है लेकिन वो कह नही पाते उन्हें ऐसा लगता है की सारी अर्थव्यवस्था तो स्कूल की फीस पर ही चल रही थी। अब आप उनकी पीड़ा को उनकी ही भाषा में समझे। किसी अभिभावक ने मकान बना लिया इसलिए स्कूल की फीस नहीं दे सकता किसी अभिभावक ने नया वाहन ले लिया इसलिए स्कूल की फीस नहीं दे सकता किसी के घर में शादी है इसलिए स्कूल की फीस नहीं दे सकता कोई बीमार हो गया था इसलिए स्कूल की फीस नहीं दे सकता किसी की फसल कम हुई है इसलिए स्कूल की फीस नहीं दे सकता अब आपको पता चल गया होगा की सारे काम स्कूल की फीस से ही हो रहे थे स्कूल की फीस पर ही अर्थव्यवस्था टिकी थी। सरकार और मीडिया बाले कह रहे है की स्कूल वाले चोर हैं अभिभावकों को लूटा जा रहा है घोर अत्याचार हो रहा है बच्चों के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है आरटीई के मानकों का पालन नही हो रहा है जबकि सच्चाई यह है कि हिंदी मीडियम के प्राइवेट स्कूल डूबती फीस के कारण इस समय बन्द होने के कगार पर हैं ।


जिन इंग्लिश मीडियम स्कूलों में बच्चों के एडमिशन की फ़ीस हजारों रुपये होती है वे स्कूल बड़े-बड़े नेताओं और ओद्योगिक घरानों के ऊँची पहुँच बालों के होते हैं जिनके खिलाफ कोई सरकार कुछ कार्यवाही नहीं कर सकती उनके यहा लेट फ़ीस जमा करने पर फ़ाइन पहले से ही तय होता है और सभी फ़ीस जमा भी करते है कोई लेट फ़ीस के साथ कोई समय पर जमाकर लेट फ़ीस का चार्ज बचाकर लेकिन जमा सभी करते है और एक बात इन स्कूलों में हर महीने की फ़ीस अलग अलग तय होती है उसका चार्ड भी अभिभावक को दिया जाता है। लेकिन कोई अभिभावक विरोध नही करता है। फ्री में बच्चों को पढ़ाने के लिए सरकारी स्कूल का विकल्प सदैव खुला है लेकिन यहा बात हो रही है प्राइवेट स्कूल की अभिभावक यह भी जानता है कि निजी स्कूल में पैसा तो खर्च होता है पर पढाई की गारण्टी भी होती है। आज कल सरकार और अन्य तथाकथित लोग हिंदी मीडियम के प्राइवेट स्कूलों को बदनाम करने पर आमादा है । सरकार के नित नए नियम परेशानी का सबब बन रहे हैं ये नियम अभिभावकों को भी गुमराह कर रहे हैं। सरकार ने कहा की लॉक डाउन में मार्च अप्रैल मई की फ़ीस बच्चों से अभी न ली जाये लेकिन जिन स्कूलों ने बच्चों से जनवरी फ़रवरी की फ़ीस भी नही जमा करा पाई उन्हें क्या उसे जमा कराने की छूट दी सरकार ने जब स्कूल फ़ीस नही लेगा तो टीचर का वेतन कहा से प्रबंधक देगा कोई बीच का रास्ता निकालना चाहिए था सरकार को जैसे कहा जा सकता था की स्कूल चाहे तो 25% एव 50% फ़ीस में छूट देकर इस आपदा में देश हित में निर्णय ले सकते है फ़ीस को किस्तों में जमा करने की छूट दे सकते है पुरानी क्लास से जो बच्चे नई क्लास में जा रहे उनकी किताबें गरीब बच्चों को दिलवा सकते है ये सराहनीय कार्य किये जा सकते थे लेकिन ऐसा कुछ नही निर्णय सभी पक्ष को देखकर करना चाहिए। आज इंग्लिश मीडियम बाले स्कूल चुपचाप किताबें घर पर पहुँचा रहे फ़ीस भी लगभग पूरी बसूल चुके उनपर कोई कार्यवाही य नियम सरकार के लागू क्यों नही होते ऐसा क्यों ये सोचनीय विषय है।


संपादकीय लेख देवेन्द्र प्रताप सिंह कुशवाहा

राष्ट्रीय सुदर्शन ब्यूरों चीफ शाहजहाँपुर

9935161356: 9452281886

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