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नियुक्ति / समायोजन का पेंच दूरस्थ बीटीसी का प्रशिक्षण व टीईटी उत्तीर्ण करने वाले शिक्षामित्रों की भरमार है।



उत्तर प्रदेश : खराब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है अर्थशास्त्र में ग्रेशम का यह सिद्धांत शिक्षामित्रों पर बिल्कुल सटीक बैठता है। शिक्षामित्रों के समायोजन / नियुक्ति में जिन युवाओं के पास अध्यापक बनने की न्यूनतम अर्हता थी उन पर अंगुली उठी नतीजा उन युवाओं का भी समायोजन अवैध हो गया जो सारी अर्हताएं पूरी करते थे। वजह आला अफसरों की अनदेखी है। नियुक्ति / समायोजन की गलत प्रक्रिया शुरू होने एवं आरक्षण के नियमों का अनुपालन न होने से करीब एक लाख शिक्षामित्र शिक्षक बनने की दौड़ से बाहर हो गए हैं।


बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक स्कूलों में डेढ़ दशक पहले शिक्षामित्रों की तैनाती हुई थी। हर विद्यालय में दो-दो शिक्षामित्र रखे जाने से उनकी संख्या एक लाख 66 हजार तक पहुंच गई थी। शासन ने निर्देश जारी किया जो आवेदक बीएड पास होंगे उन्हें वरीयता दी जाएगी। इससे बीएड पास अभ्यर्थियों की शिक्षामित्र के रूप में तैनाती हुई। वहीं एक आदेश हुआ कि अनौपचारिक शिक्षा में कार्य करने वालों को शिक्षामित्र पद पर नियुक्ति में वरीयता मिलेगी। इससे अनौपचारिक शिक्षा में कार्य करने वाले शिक्षामित्र बने 15 जून 2007 को शासनादेश हुआ कि जो शिक्षामित्र स्नातक हैं उन्हें बीटीसी की दस फीसदी एवं जो बीएड हैं उनका विशिष्ट बीटीसी की दस फीसद सीटों पर चयन किया जाएगा। ऐसे में करीब 16 हजार शिक्षामित्र विशिष्ट बीटीसी करके एवं चार हजार बीटीसी करके नियमित शिक्षक पहले ही बन चुके हैं। इसके बाद भी विभाग में स्नातक बीएड करके शिक्षामित्र बनने वालों की भरमार रही।


सामान्य बीटीसी की दस फीसदी सीटों पर शिक्षामित्रों का चयन हुआ था। दूरस्थ बीटीसी करने वाले शिक्षामित्रों की तादाद तो काफी अधिक है उनमें से बड़ी संख्या में युवाओं ने टीईटी भी पास किया है। करीब चालीस हजर शिक्षामित्र टीईटी भी पास हैं। इसकी वजह यह है कि 2011 में एनसीटीई के फरमान पर जब टीईटी अनिवार्य हुआ तब से शिक्षामित्रों ने उस परीक्षा में भी बैठना और उसे उत्तीर्ण करना शुरू किया।


इस सारी कवायद पर उस समय पानी फिर गया जब इंटर उत्तीर्ण युवाओं को शिक्षामित्रों बनाने पर अंगुली उठी। कहा गया कि शिक्षक बनने की न्यूनतम अर्हता स्नातक है तो इंटर उत्तीर्ण युवाओं को शिक्षक कैसे बनाया जाएगा। यह प्रकरण हाईकोर्ट में जाने पर नियुक्ति अधिकारी पर सवाल उठे। कहा गया कि शिक्षकों की नियुक्ति बेसिक शिक्षा अधिकारी करता है आखिर ग्राम प्रधान की नियुक्ति कैसे मानी जा सकती है। ऐसे ही शिक्षामित्रों की नियुक्ति में आरक्षण के नियमों की भी अनदेखी हुई। जब की हकीकत यह है। सर्व शिक्षा अभियान के शिक्षामित्रों की नियुक्ति जिलाधिकारी की चयन समिति के द्वारा नियुक्त काउंसलर उपजिला अधिकारी की रिपोर्ट पर बीएसए के आदेश जारी करने पर डायट प्राचार्य ने 30 दिवसीय प्रशिक्षण करा कर सारे शिक्षामित्रों को स्कूल में नियुक्त देने लायक बनाया और बीएसए के आदेशानुसार खण्ड शिक्षा अधिकारी ने प्रधानाध्यापक को इन्हें ज्वाइन कराने निर्देश ग्राम प्रधान का कार्य केवल प्रस्ताव पर अनुमोदन का था।इसी तर्ज़ पर आज भी सरकारी सस्ता गल्ला की दुकान पर कोटेदारों की नियुक्ति होती है। फिर यह सब गलत तरफ से नियुक्त हुए घोषित कैसे कर दिये गये।


सरकार ने हाईकोर्ट में इनकी केटेगिरी बना कर नही दी इस लिए सभी को एक जैसा हाईकोर्ट ने माना कई बड़े अधिकारी यह भी मानते हैं कि हजारों शिक्षामित्र अध्यापक पद की अर्हता नियुक्ति के समय से ही रखते हैं लेकिन उन्हें नियमित शिक्षक के रूप में इसलिए मौका नहीं दिया जा सकता क्योंकि शासन ने इस कार्य योजना पर कार्य ही नही किया जब की इन शिक्षामित्रों को इनकी प्रथम नियुक्ति जनवरी 2007 से मान कर अध्यापक बनाया जा सकता है। क्योंकि जुलाई 2006 से लगे शिक्षामित्रों का जुलाई 2007 में नवीनीकरण नही हुआ और बाद में कभी भी नवीनीकरण हुआ ही नही था। इसी आधार पर इन्हे समायोजित / नियुक्त किया गया होता तब यह सहायक अध्यापक बने रहते।


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