भारत निर्वाचन आयोग की मीटिंग में चीफ इलेक्शन कमिश्नर सुनील अरोड़ा के साथ सुशील चंद्रा, अशोक लवासा भी शामिल हुए।
वरिष्ठ आयुक्त अशोक लवासा ने CEC को लिखी अपनी चिट्ठी में कहा था कि जब मतभिन्नता के तर्क और दलील आदेश में लिखे ही नहीं जाते तो उनके आयोग की बैठक में भाग लेने का कोई मतलब नहीं है। अब आयोग का कहना है कि तीनों में से किसी भी आयुक्त की मतभिन्नता के तर्क मीटिंग के रिकॉर्ड में तो दर्ज होते हैं पर आदेश में बहुमत का निर्णय ही प्रकाशित किया जाता है। साफ शब्दों में मतलब दो लोगों की सहमति बन गई तब तीसरे का कोई काम नही रह जाता है।
बैठक में इस बात पर भी चर्चा हुई कि पद छोड़ने के बाद कई आयुक्त अपने मन की बात ब्लॉग या किताबों में लिखते रहे हैं ऐसे में वह तसल्ली से अपनी बातों को सभी के सामने रख सकते हैं।
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