*सुभाष चौक तेजी बाजार में मनाई गई पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की पुण्यतिथि*
*रिपोर्टर-कुलदीप विश्वकर्मा*
जौनपुर-महराजगंज/-:
युवा कांग्रेस नेता राजेश विश्वकर्मा उर्फ डब्लू (अध्यक्ष svct रेड ब्रिगेड़ जौनपुर) एवम ब्लाक अध्यक्ष बक्सा डॉ प्रभात विक्रम सिंह ने उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ज्ञानी जैलसिंह का सम्पूर्ण जीवन अत्यन्त संघर्षों में कार्य करते हुए बीता । वे स्वतन्त्रता के भी महान् सिपाही थे । विश्वकर्मा समाज के गौरव व भारत रत्न के साथ साथ भारत के दो प्रधानमंत्री आयरन लेडी स्व श्रीमती इन्दिरा गांधी व राजीव गांधी के कार्यकाल तक राष्ट्रपति रहे । कबीर की तरह उपाधि या डिग्रियां तो उनके पास नहीं थीं, लेकिन वे सचमुच ज्ञान के भण्डार, अर्थात ज्ञानी ही थे । ईमानदारी, निर्भीकता, कर्म के प्रति निष्ठा का भाव उनके व्यक्तित्व के प्रभावशाली गुण थे । ज्ञानी जैलसिंह का जन्म 5 मई 1916 को एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम किसनसिंह था । ज्ञानी जैलसिंह की विधिवत शिक्षा मिडिल कक्षा तक ही पूरी हो पायी थी । 5 वर्ष की अवस्था से गुरुग्रन्थ साहिब का पाठ करने वाले ज्ञानी जैलसिंह ने स्वाध्याय के बल पर हिन्दी, अंग्रेजी, वेद, उपनिषद, गीता, कुरान, बाइबिल , उर्दू साहित्य का व्यापक ज्ञान प्राप्त था । अपने संघर्ष के दिनों में उन्होंने कठोर परिश्रम किया। ज्ञानी जैलसिंह स्वतन्त्रता के एक अच्छे सेनानी थे । बचपन से ही उनके मन में गुलाम भारत को अंग्रेजों से मुक्ति दिलाने की अदम्य इच्छा रही थी । अंग्रेजों द्वारा गुलाम भारतीयों पर किये जाने वाले अत्याचारों को देखकर उनका खून खौल उठता था । किशोरावस्था में जालियांवाला बाग हत्याकाण्ड तथा भगतसिंह की फांसी के बाद गहरा आक्रोश था । तो उन्होंने अंग्रेज सरकार को पूरी तरह से उखाड़ फेंकने के लिए आनन्दपुर साहिब के एक क्रान्तिकारी दल से अपना नाता जोड़ लिया । 1934 में ये फरीदपुर अकाली दल के सदस्य हो गये । 1938 में उन्होंने प्रजा मंडल नामक एक राजनैतिक पार्टी का गठन किया, जो भारतीय कॉग्रेस के साथ मिल कर ब्रिटिश विरोधी आंदोलन किया करती थी. जिस वजह से उन्हें जेल भेज दिया गया और उन्हें पांच वर्ष की सजा सुनाई गई. इसी दौरान उनका नाम जैल सिंह पड़ा। स्वतंत्रता से पूर्व ज्ञानी जैल सिंह देश को स्वतंत्र कराने के लिए और अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने के लिए विभिन्न आंदोलनों का हिस्सा बने. सन 1946 में फरीदकोट जिले में किसी कार्यक्रम के दौरान जेल सिंह जी को अंग्रजो द्वारा तिरंगा झंडा फहराने से रोका गया, इस बात से परेशान जेल सिंह जी ने जवाहर लाल नेहरू जी को चिट्ठी लिख फरीदकोट आने का निमंत्रण दिया. फरीदकोट आने के बाद नेहरूजी ने देखा, कैसे पूरा फरीदकोट जेल सिंह जी की बातों का अनुसरण करता है. ये देख कर नेहरु जी ने जेल सिंह जी की योग्यता पहचान ली और अपनी पार्टी से जोड़ लिया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात ज्ञानी जैल सिंह को पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्यों के संघ का राजस्व मंत्री बना दिया गया. 1951 जैल सिंह जी कृषि मंत्री बन गए. इसके अलावा वे 1956 से 1962 तक राज्यसभा के भी सदस्य रहे. 1972 से 1977 तक पंजाब के मुख्यमंत्री रहे। 1980 में जेल सिंह जी देश के गृहमंत्री बने । जेल सिंह जी को राष्ट्रपति पद से नवाज़ा गया. 25 जुलाई, 1982 को राष्ट्पति पद की शपथ ली ।.राष्ट्रपति पद पर रहते उन्होंने दबे कुचले उपेक्षित वर्ग के उत्थान में अनेक कार्य किये । किंतु गुदड़ी का लाल दिनाक 25 दिसम्बर, 1994 को सड़क दुर्घटना में ब्रह्मलीन हो गया । ज्ञानी जी ने अपने जीवन मे अनेक सघर्षो का सामना किया हमे उनके जीवन से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ना चाहिए ।
श्रधांजलि सभा मे श्री जुल्मी सिंह सूरज विश्वकर्मा मेहीलाल विश्वकर्मा डॉ शिव विश्वकर्मा नन्दलाल प्रमोद सूरज सेठ अजय शिवम गुप्ता आशीष जायसवाल आलोक गौतम दीपक रजक आदि कई लोग उपस्थित रहे
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