पत्रकार की परिभाषा एवं पत्रकारिता के मापदंड
उत्तर प्रदेश में वर्तमान में पत्रकारिता संक्रमण के दौर से गुजर रही है। पत्रकारिता के मापदंड खत्म हो चुके हैं, लोग अमर्यादित पत्रकारिता कर रहे है साथ ही देशहित समाजहित सर्वोपरि की अवधारणा खत्म होकर अब जेबहित की पत्रकारिता हो चली है। साथ ही संगठनात्मक संरक्षण में पलते ब्लेकमेलर भी पत्रकार कहलाने लगे हैं। बिना किसी मापदण्ड के चल रहे इस धंधे में (जी हाँ इसे अब धंधा ही कहना पड़ेगा) उतरना हर किसी के लिए आसान हो गया है।
वहीं राजनीतिक संरक्षण में पत्रकारिता करने वालों की वजह से असल पत्रकार कहीं खो गया है। अब समय आ गया है कि हमे पत्रकारिता को बचाने के लिए मुहिम चलाना होगी। पत्रकारिता में हनन होते मूल्यों को पुनः संजोना होगा। व्यवसायीकरण के दौर में आज प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सब सिर्फ व्यवसाय आधारित पत्रकारिता कर रहे हैं, बावजूद इसके प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया ने चाहे अपना वजूद बरकरार रखने के लिए ही पर कुछ मूल्यों का निर्धारण किया हुआ था। किंतु अब पत्रकारिता के नाम पर छलावा करने के लिए इलेक्ट्रानिक मीडिया का स्थान यूट्यूब चैनल और प्रिंट मीडिया का स्थान वेबसाइट्स ने ले लिया है।
*बिना किसी सरकारी निगरानी समिति के चल रहे यूट्यूब चेनल्स ओर उनमे चल रही मूल्यहीन पत्रकारिता की बानगी बनी खबरों के कारण पत्रकारों की अहमियत कम होती जा रही है।*
असल पत्रकारों और *"कमाई का जरिया"* में फर्क नही रह गया है।
अब समय आ गया है पत्रकारिता के मापदंड तय होना चाहिए , पत्रकारों की एक भीड़ सी हो गयी है, जिसमे पत्रकार खो गया है। सरकार ने जनसम्पर्क विभाग तो बनाया लेकिन पत्रकारों के लिए कोई मापदण्ड तय नही किए, पत्रकार किसे माना जाए ? क्या हाथ मे माइक आईडी ही पत्रकारिता का तमगा बन गया है?
आज की तारीख में पत्रकारों के लिए एक छोटी सी परीक्षा अनिवार्य हो गयी है। एक जमाना था जब हम किसी अखबार संस्थान में जाते थे तो वो यह देखते थे कि खबरें लिखना भी आता है या नही, खबर की परिपक्वता, उस खबर का क्या असर होगा?, समाज पर क्या असर पड़ेगा ?, इन सब बातों का अनुभव व्यक्ति में है या नही? इसके बाद एक विषय दिया जाता था जिस पर खबर बनाई जाती थी और वो खबर उनके मापदण्ड में खरी उतरी या नहीं? यह देखा जाता था। परन्तु वर्तमान दौर में यह देखा जाने लगा है कि यह व्यक्ति महीने में कितने कमाकर संस्थान को दे सकता है? यह देखा जा रहा है। वो पैसा कहां से ला रहा? उसका तरीका क्या है ? समाज मे उसके इन तरीकों से क्या असर पड़ रहा है कोई नही देख रहा।
*अब तय होना चाहिए कि खबरें किस परिमाप में लिखी जाए?*
*या फिर सरकार पत्रकारों का एक निश्चित मापदण्ड तय करे कि बिना किसी दस्तावेज के लिखित परीक्षा आयोजित हो और निर्धारित अहर्ताओं को पूर्ण करने वाले को ही योग्यताओं के आधार पर पत्रकार माना जाए।*
*आज सिर्फ हाथ मे डंडा पकड़ कर ब्लैकमेलिंग करने वाले संगठनों के संरक्षण में पत्रकार सुरक्षा कानून की बात करते हैं। जबकि असली पत्रकार किसी सुरक्षा का मोहताज नही है।* बावजूद इसके सरकार पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करती है तो उसे पत्रकार किसे माना जाए यह मापदण्ड भी तय करने होंगे अन्यथा आगामी समय में पत्रकारिता का दुरुपयोग ओर ज्यादा बढ़ जाएगा।
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